तराइन का युद्ध, Battle of Tarain तराइन की लड़ाई, युद्ध के कारण, परिणाम, पृथ्वीराज चौहान के हारने का कारण, युद्ध का भारत पर इस युद्ध का प्रभाव की पूरी जानकारी

तराइन का युद्ध (Tarain ka Yudh) – Battle of Tarain : Summary
- तराइन का युद्ध कहां लड़ा गया था? : तराइन का युद्ध, तराइन के मैदान में वर्तमान पंजाब (उस समय के सरहिंद भटिंडा) के पास लड़ा गया था।
- तराइन का युद्ध कब हुआ था? : तराइन का युद्ध दो बार लड़ा गया, पहली बार 1191 ईसवी में और दूसरी बार 1192 ईसवी में।
- तराइन का प्रथम युद्ध : दिल्ली के राजपूत शासक पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी के बीच 1191 ईसवी में लड़ा गया, इस युद्ध में मोहम्मद गौरी को बुरी तरह पराजय मिली थी।
- तराइन का द्धितीय युद्ध : दिल्ली के राजपूत शासक पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी दोबारा 1192 ईसवी में युद्ध में आमने सामने थे।
- तराइन का द्धितीय युद्ध किन-किन के बीच हुआ : तराइन के दोनों युद्ध पृथ्वीराज चौहान और मुहम्मद गौरी के बीच लडे गए।
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तराइन का युद्ध:
तराइन के युद्ध को भारतीय इतिहास का सबसे महत्त्वपूर्ण युद्ध माना जाता है। वैसे तो तराइन में कई युद्ध लड़े गए लेकिन भारत के इतिहास और भविष्य को बदलने वाला युद्ध पृथ्वीराज चौहान और मुस्लिम आक्रमणकारी मुहम्मद गौरी के बीच लड़ा गया था। वह भी एक बार नही बल्कि दो बार।

मोहम्मद गौरी अपनी राज्य विस्तार की आकांक्षा और निजी स्वार्थ मुस्लिम धर्म का विस्तार करने के उद्देश्य से दिल्ली के शासक पृथ्वीराज चौहान से तराइन का युद्ध लड़ा था।
मोहम्मद ग़ौरी का मूल नाम – मुईज़ुद्दीन मुहम्मद बिन साम था। मोहम्मद गौरी तुर्क का शासक था। आपको बता दें की मुस्लिम आक्रमणकारी शहाबुद्दीन मुहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान पर 18 बार आक्रमण किया जिनमे से 17 बार मुहम्मद गौरी को हार का सामना करना था।
तराइन के पहले युद्ध 1191 ईसवी में पृथ्वीराज चौहान की अद्भुत ताकत और शक्तिशाली सेना के डर से मोहम्मद गौरी युद्ध का मैदान छोड़ कर भाग गया था और पृथ्वीराज चौहान को विजय मिली थी। यहाँ एक ग़लती पृथ्वीराज चौहान से हुई थी अगर पृथ्वीराज इसी युद्ध में मोहम्मद गौरी को मार देते तो तराइन में दूसरा युद्ध नही होता।
मुहम्मद गौरी, पृथ्वीराज चौहान से बदले की आग में जल रहा था ऐसे में भारत के देशद्रोही राजा जयचंद ने मुहम्मद गौरी का साथ दिया जिसके परिणाम स्वरूप तराइन के दूसरे युद्ध जो की 1192 ईसवी लड़ा गया था में पृथ्वीराज चौहान को हार का सामना करना पड़ा और मुस्लिम आक्रमणकारी मुहम्मद गौरी को विजय प्राप्त हुई थी। मुहम्मद गौरी ने इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान को को बंदी बना लिया था। इसी हार के बाद से भारत में मुहम्मद गौरी ने मुस्लिम साम्राज्य की नीव डाली थी।
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तराइन युद्ध के कारण और गतिविधियां:
तराइन का युद्ध का मुख्य कारण थे – दिल्ली के राजपूत शासक पृथ्वीराज चौहान का मोहम्मद गौरी की मागों का ना मानना और मुस्लिम धर्म को स्वीकार करने से साफ मना कर देना। इसके अलावा मोहम्मद गौरी का निजी स्वार्थ और अपने राज्य विस्तार की उम्मीद के साथ मुस्लिम धर्म को भारत में विस्तार करने की मंशा। इन्ही कारणों से पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी के बीच तराइन का युद्ध हुआ था।
आपको बता दें की भारत के धनी होने के कारण मुस्लिम लूटेरे और शासक जो की मध्य पूर्व एशिया (Middle East Asia) के थे कई बार भारत पर हमला किए थे लेकिन कभी वो सफल नही हो पाए थे और सदियों तक भारत की रक्षा की गई थी।
साथ में इन मुस्लिम लूटेरों और आक्रमण कारियों का एक और मिशन होता था हिंदू भारत में मुस्लिम धर्म का विस्तार करना जो की उस समय ज़ोर ज़बरदस्ती से करवाया जाता था।
आपकी जानकारी के लिए बता दें की भारत पर हमला करने वाला सबसे पहला मुस्लिम लूटेरा और आक्रमणकारी मीर कासिम था, लेकिन भारत पर हमला करने में जो सबसे ज़्यादा प्रसिद्ध हुआ था उसका नाम मोहम्मद गजनवी था यह अफग़ानिस्तान के एक छोटे से प्रांत का एक लुटेरा था।
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आइए अब बात करते हैं तराइन युद्ध के कारणों की – मोहम्मद गौरी ने जब लाहौर पर कब्जा किया उसके बाद से ही दिल्ली पर उसके हमले की संभावनाएं बढ़ गई थी। लाहौर पर पर क़ब्ज़ा करने के लिए मोहम्मद गौरी ने मोहम्मद गजनवी के गजनवी शासक को हराया था।
लाहौर पर क़ब्ज़े के कुछ समय बाद मोहम्मद गौरी ने दिल्ली के शासक पृथ्वीराज चौहान को एक मैसेज भेजा। उस मैसेज में मोहम्मद गौरी ने दिल्ली के शासक पृथ्वीराज चौहान से दो माँग की थी –
- उसकी पहली माँग थी पृथ्वीराज चौहान ख़ुद इस्लाम धर्म क़बूल कर लें
- दूसरी माँग थी पृथ्वीराज चौहान ख़ुद को मोहम्मद गौरी के अधीन शासक घोषित करें और अपना राज करते रहें।
पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गौरी की इन दोनों मागों को मानने से इंकार कर दिया ऐसे में अब युद्ध को रोक पाना असंभव था। आगे चल कर दोनों शासकों की सेनाएँ तराइन के मैदान में युद्ध के लिए आमने सामने खडी हो गई।
तराइन युद्ध के परिणाम:
तराइन का पहला युद्ध जो की 1191 ईसवी में पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी के बीच लड़ा गया था। तराइन के पहले युद्ध में पृथ्वीराज चौहान को विजय मिली थी और मोहम्मद गौरी को हार का मुँह देखना पड़ा था।
तराइन का दूसरा युद्ध जो की 1192 ईसवी में दोबारा पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी के लड़ा गया था। इसमें पृथ्वीराज चौहान को हार का सामना करना पड़ा और मुहम्मद गौरी को विजय प्राप्त हुई थी। मुहम्मद गौरी ने इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान और उनके और राज कवि चंदबरदाई को बंदी बना लिया था।
इसी हार के बाद से भारत में मुहम्मद गौरी ने मुस्लिम साम्राज्य की नीव डाली थी।
तराइन के दूसरे युद्ध में पृथ्वीराज चौहान के हारने का कारण:
तराइन के पहले युद्ध में पृथ्वीराज चौहान से हार कर भाग जाने वाला मुस्लिम आक्रमणकारी शहाबुद्दीन मुहम्मद गौरी पृथ्वीराज चौहान से बदलना लेने के लिए मौक़े की तलाश में था और इसी आग में जल रहा था।
कन्नौज का राजा जयचंद जो की पृथ्वीराज चौहान का ससुर और संयोगिता का पिता था पृथ्वीराज चौहान से चिढ़ा हुआ था। इसीलिए राजा जयचंद ने मुहम्मद गौरी को पृथ्वीराज पर हमला करने के लिए उकसाया और सैन्य साहयता देने का भी वादा किया।
कन्नौज के राजा जयचंद से ऐसा आश्वासन पाकर मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज पर हमला कर दिया।
इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान ने बड़ी ही आक्रामकता के साथ मोहम्मद गौरी की सेना पर हमला किया था। इसके बाद मोहम्मद गौरी की घुड़सवार सेना ने पृथ्वीराज की सेना के हाथियों को घेर लिया और उन पर बाण चला दिए। ऐसे में घायल हाथी घबरा कर अपनी ही सेना को रोंदना चालू कर दिया। जिससे पृथ्वीराज की राजपूत सेना को बहुत नुक़सान हुआ था।
आपको बता दें की पृथ्वीराज की राजपूत सेना कभी भी रात में हमले नही करती थी। लेकिन मुस्लिम आक्रमणकारी शहाबुद्दीन मुहम्मद गौरी के तुर्क सैनिक रात में भी हमले कर रहे थे।
इसका परिणाम यह हुआ की पृथ्वीराज को युद्ध में हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज और राज कवि चंदबरदाई को बंधक बना लिया था।
लेकिन आपको बता दें की मुहम्मद गौरी ने राजा जयचंद का भी बुरा हाल किया था। गौरी ने कुछ समय बाद राजा जयचंद को मार कर कन्नौज पर अपना अधिकार जमा लिया था। राजा जयचंद की मृत्यु 1248 ई० में हुई थी।
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तराइन युद्ध का भारत पर प्रभाव:
तराइन के दूसरे युद्ध में पृथ्वीराज चौहान को मिली हार ने भारत का भविष्य पूरी तरह बदल कर रख दिया था। तराइन के दूसरे युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की हुई हार से ही भारत में मुस्लिम सभ्यता और साम्राज्य की नींव पड़ी।
इस युद्ध के कारण ही मुस्लिम आक्रमणकारी शहाबुद्दीन मुहम्मद गौरी ने भारत में मुस्लिम धर्म की नींव रखी। और इसी हार से भारत में मुस्लिम आक्रमणकारी अपने पैर जमा पाए और अगले कई सौ सालों तक भारत में राज करते रहे।
वास्तविक रुप से तराइन के दूसरे युद्ध में मिली हार से ही भारत में दासता की परंपरा शुरु हुई थी। तराइन के दूसरे युद्ध में हारने के बाद ही भारत की सत्ता पहली बार किसी विदेशी शासक के हाथ में गई थी।
तराइन के दूसरे युद्ध में मिली हार से ही भारत में मुस्लिम धर्म आया। इससे पहले यहाँ सिर्फ़ सनातन हिंदू धर्म था। जिन लोगों मुस्लिम लूटेरों और आक्रमणकारियों के डर से हिंदू धर्म को छोड़ कर मुस्लिम धर्म अपना लिया था। आज उन्ही के वंशज भारत में अपने आप को महान मुस्लिम कहते हैं, देश में सरिया क़ानून की बात करते हैं।
पृथ्वीराज चौहान (Prithviraj Chauhan) के बारे में :
पृथ्वीराज चौहान का जन्म 1149 ई० में हुआ था। पृथ्वीराज चौहान को 14 वर्ष की उम्र में उनके पिता की मृत्यु के बाद अजमेर का शासक बनाया गया था। इस तरह पृथ्वीराज चौहान बचपन में ही अजमेर और दिल्ली के शासन की बागडोर अपने हाथों में ले ली थी। पृथ्वीराज का दूसरा नाम राय पिथौरा भी है। पृथ्वीराज बचपन से ही युद्ध कौशल में माहिर हो गए थे और एक कुशल योद्धा थे।
पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता जो की राजा जयचंद की पुत्री थी के बीच प्रेम था। पृथ्वीराज ने संयोगिता का अपहरण करके उससे विवाह कर लिया था। वैसे पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता की प्रेम कहानी आज में काफी फ़ेमस है। संयोगिता का अपहरण करने के कारण ही उसका पिता राजा जयचंद पृथ्वीराज का विरोधी बन गया था।
पृथ्वीराज चौहान ने अपने जीवनकाल में कई युद्ध लडे थे, लेकिन उनमे से दो युद्ध पृथ्वीराज और भारत के लिए अलग ही महत्व रखते हैं। दोनों युद्ध पृथ्वीराज चौहान और मुहम्मद ग़ोरी के बीच तराइन के मैदान में हुए इन्ही को तराइन के युद्ध (Battle of Tarain) के नाम से जाना जाता है। तराइन का प्रथम युद्ध 1191 ई. में हुआ था। और तराइन का दूसरा युद्ध 1192 ई. में हुआ था। तराइन के युद्ध को तरावड़ी का युद्ध के नाम से भी जाना जाता है।
तराइन या तरावड़ी की जानकारी:
वर्तमान में तरावड़ी जिसका एतिहासिक नाम तराइन था। तरावड़ी हरियाणा के थानेश्वर के पास स्थित है। कुरूक्षेत्र और करनाल के बीच स्थित एक शहर। हरियाणा में राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 1 पर यह बसा हुआ है। तरावड़ी आज के समय में बासमती चावलों की खेती के लिए पूरी दुनिया में प्रसिध्द है। यहाँ से बासमती चावलों का निर्यात भी किया जाता है।
पृथ्वीराज विजय महाकाव्यम् के बारे में :
संस्कृत का महाकाव्य “पृथ्वीराजविजयमहाकाव्यं ” है इसे हिन्दी में “पृथ्वीराज विजय महाकाव्य” के नाम से जाना जाता है। पृथ्वीराजविजयमहाकाव्यं की रचना कश्मीरी कवि जयंक ने 1191-92 में की थी। पृथ्वीराजविजयमहाकाव्यं में तरावड़ी या तराइन के प्रथम युद्ध के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है।
इसी “पृथ्वीराज विजय महाकाव्य” में तराइन के प्रथम युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की विजय की जानकारी भी दी गई है। लेकिन इस महाकाव्य “पृथ्वीराजविजयमहाकाव्यं ” में तराइन के दूसरे युद्ध की जानकारी नही दी गई है।
टेलीविजन कार्यक्रम : “धरती का वीर योद्धा पृथ्वीराज चौहान”
टेलीविजन चैनल स्टार प्लस पर आने वाला धारावाहिक “धरती का वीर योद्धा पृथ्वीराज चौहान” काफी सफल रहा था। इस धारावाहिक का निर्माण सागर आर्ट्स द्वारा किया गया था। इसी सागर आर्ट्स के बनाए रामायण और महाभारत भी काफ़ी सफल हुए, जिन्हें आज हम रामानन्द रामायण के नाम से जानते हैं ये सागर आर्ट्स द्वारा ही बनाए गए हैं। रामानन्द तो इसके मालिक थे।
“धरती का वीर योद्धा पृथ्वीराज चौहान” इस टीवी धारावाहिक में भारतीय इतिहास के हिन्दू राजाओं में से सबसे मशहूर पृथ्वीराज चौहान के जीवन के कई पहलुओं को दिखाया गया है। इसमें पृथ्वीराज का प्रारम्भिक जीवन या बचपन, राजकुमारी संयोगिता के लिए उनका प्रेम, उनके साहसिक कार्य और उनके द्वारा लड़े गए कई युद्धों के बारे में बताया गया है।
इस धारावाहिक का निर्माण मुख्य रूप से महाकाव्य “पृथ्वीराज रासो” के आधार पर किया गया है। “पृथ्वीराज रासो” की रचना कवि चन्दवरदाई ने की थी। हालाँकि आप सब जानते होंगे कि टीवी पर जब कोई धारावाहिक बनता है तो वो पैसा कमाने के उद्देश्य से बनाया जाता है इसलिए इस धारावाहिक में भी कुछ बातों को जोड़ा है ताकि इससे धारावाहिक को सफल बनाया जा सके।
इसके लिए निर्माताओं ने पृथ्वीराज और राजकुमारी संयोगिता की प्रेम कहानी को कुछ अलग ही अन्दाज़ में बनाए हैं।
“धरती का वीर योद्धा पृथ्वीराज चौहान” धारावाहिक का टीवी पर प्रसारण 15 मार्च 2009 से स्टार प्लस ने बंद कर दिया था।