
मृत्यु होने के लगभग 12 दिन बाद इंसान की आत्मा यमलोक की ओर अपनी यात्रा शुरू करती है। वह अपने आप ही यमलोक के रास्ते में आगे बढ़ती चली जाती है और जहां कहीं भी कुछ रूकावट आती है, वहाँ यम के दूत उसे सही रास्ता दिखाते हैं। ऐसा माना जाता है कि इंसान के मरने के बाद उसकी आत्मा उस इंसान के जीवन के कर्म और मरने की तिथि के अनुसार रास्ता तय करती है।
कई पुराणों में बताया गया है कि मारने के बाद 13 दिनों तक आत्मा अपने घर के पास ही रहती है और कई बार अपनों की मोह में वो पुराने शरीर में प्रवेश करने की कोशिश करती है, लेकिन यम के दूत आत्मा को ऐसा करने से रोक देते हैं। 10 दिनों के बाद जब उसकी संतान पिंडदान करती है तब जाकर आत्मा को मोह से छुटकारा मिलता है और वो यमलोक की ओर निकल जाती है।
गरुड़ पुराण अनुसार जब मृत्यु का समय नजदीक आता है तो यमलोक से 2 यमदूत आत्मा को लेने आते हैं। यमदूतों के आते ही आत्मा शरीर से निकल जाती है। मृत्यु के बाद यमदूत आत्मा को यमलोक ले जाते हैं जहां उसे 24 घंटे तक रखा जाता है। इसके बाद आत्मा को उसी जगह पर वापस भेज दिया जाता है, जहां उसका पूरा जीवन बीता था। कहते हैं कि मृत्यु के लगभग 13 दिनों तक आत्मा अपने घर के आस पास ही रहती है।
ऐसा माना जाता है कि मृत्यु के 6 महीने पहले ही इंसान का नाक, मुँह और जीभ पत्थर की तरह कड़े होने लगते हैं। मरने के कुछ समय पहले उसके शरीर से अजीब-सी गंध आने लगती है। जिंदगी के आखिरी पलों में एक सुनहरा प्रकाश दिखाई देता है, इसके कुछ ही छड़ बाद मृत्यु हो जाती है।
धर्मग्रन्थों में इस एक बात पर अच्छी तरह से प्रकाश डाला गया है कि मृत्यु के बाद आत्मा को लेने कौन आता है। गरूड़ पुराण में कहा गया है कि मृत्यु के बाद आत्मा को परलोक ले जाने के लिए दो यमदूत आते हैं। जो व्यक्ति अपने जीवन काल में अच्छे कर्म करते हैं उनकी आत्मा शरीर से आसानी से निकल जाती है।
तस्माद्धर्म: सहायश्च सेवितव्य: सदा नृभि: – ‘इसका सरल और व्यावहारिक अर्थ यह है कि मृत्यु होने पर व्यक्ति के सगे-संबंधी भी उसकी मृत देह से कुछ समय में ही मोह छोड़ देते हैं और अंतिम संस्कार कर दूर हो जाते हैं। पिंडदान के बाद आत्मा का मोह ख़त्म हो जाता है और वो यमलोक चली जाती है।
अंतिम समय में इंसान अपनी पुरानी जिंदगी के बारे में सोचता है। वह उन बातों का सोचता है, जिससे उसका मन शांत और प्रसन्न रहे। वह उन अच्छी और बुरे दोनो पलों का याद करता है। कभी-कभी इंसान अपनी गुप्त बातों को भी उजागर कर देता है, जिसे वह जिंदगी भर अपने साथ लेकर जीता है।
जब किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है तो उसके मस्तिष्क की गतिविधि अगले 7 मिनट चलती रहती है। किसी भी इंसान के चेहरे पर हावभाव लाने का काम दिमाग ही करता है। हालाँकि सिर्फ़ दिमाग़ ही काम करता है बाक़ी शरीर नही।
अगर आप अपने प्रियजन जिनका निधन हो गया है, उनसे बात करना चाहते हैं, तो आप उस व्यक्ति के इस्तेमाल किये गए कपड़ें, पुस्तक या कुछ अन्य व्यक्तिगत वस्तु की तलाश करें। वह व्यक्ति जहां रहता था उस जगह पर जाएं। अगर आत्मा वहाँ पर होगी तो वो आपसे बात कर सकती है, हालाँकि इसका कोई प्रमाण नही है।
मृत्यु के समय यम दूतों को देखते ही लोग घबरा जाते हैं और उसका प्राण (जीव) शरीर के निचले हिस्से की ओर सरकने लगता है। कुछ ही पलों बाद प्राण वायु (जीव) नीचे के मार्ग से शरीर से बाहर निकल जाती है। ऐसा माना जाता है कि प्राण वायु के साथ अंगूठे के आकार का एक अदृश्य जीव निकलता है, यही अदृश्य जीव आत्मा होती है, जिसे यम के दूत पाश बांध कर अपने साथ यमलोक लेकर चले जाते हैं।
आत्मा के बारे में साधारणतया माना जाता है कि वह शरीर के हर हिस्से में रहती है। यानी जहां भी संवेदना होती है, वहीं उसकी उपस्थिति महसूस की जा सकती है। लेकिन शास्त्रों की मानें तो आत्मा मूलत: मस्तिष्क में निवास करती है। योग की भाषा में उस केंद्र को सहस्रार चक्र या ब्रह्मरंध्र कहते हैं।
सभी धर्मों में मौत की वेदना के बारे में जिक्र किया गया है। कुछ में तो ये भी कहा गया है कि मृत्यु के समय इतना दर्द होता है जितना जिंदा व्यक्ति की खाल उतारने के वक्त होता होगा। मौत के समय इतना दर्द और तकलीफ खासकर पापी लोगों को होता है।
गरुड़ पुराण के अनुसार – यमदूत जीव की आत्मा को अंधकार वाले रास्ते से यमलोक ले जाते हैं। यमलोक 99 हजार योजन (योजन वैदिक काल की लंबाई मापने की इकाई है) दूर है। इसके बाद यमदूत उसके जीवन भर किए गए कर्मों के अनुसार उसे सजा देते हैं और कुछ समय बाद जीवात्मा यमराज की आज्ञा से यमदूतों के साथ फिर से अपने घर आती है।
मृत्यु की प्रतीक्षा में एक बूढ़ी स्त्री जिसके समुचित जिंदगी उसकी आंखों के सामने घूम रही है और मरने से पहले अपनी अचूक जिजीविषा से वह याद करती है । नजदीक आती मृत्यु का उन्हें कोई भय नहीं है, बल्कि मानो फिर से घिरती घुमड़ती सारी जिंदगी एक निर्भर न्योता है कि वह आए उसके लिए वह पूरी तरह से तैयार हैं।
प्रचलित मान्यता के अनुसार जब किसी की मृत्यु होती है तब यमराज के दूत उस व्यक्ति की आत्मा को पकड़कर सबसे पहले एक मंदिर में चित्रगुप्त के सामने प्रस्तुत करते हैं। चित्रगुप्त उसके कर्मों का ब्योरा सुनाते हैं। इसके बाद चित्रगुप्त के सामने के कक्ष में आत्मा को ले जाया जाता है। इस कमरे को यमराज की कचहरी कहा जाता है।